मुझसे कब बात करोगी तुम…..
मन उदास है आज मेरा
अजब बेकली है आज तारी
लफ्ज़ गूंगे हो गए मेरे
क़लम भी चुप-चुप है आज
तुम जो रूठ गयी हो मुझसे
सब नज़ारे फीके लगते है
तुम्हारे बिना…..
तुम संग थीं तो रुत सुहानी थी
ठहरे दरया में अजब रवानी थी
तुम्हारी मुस्कान से गुलाब जलते थे
नए ख्वाब तब आँखों में पलते थे
मेरे पास थीं तुम सीप में मोती जैसे
मिली हो आँखों को नई ज्योति जैसे
अपने बेनाम रिश्ते को
इक नाम दिया था तुमने
मेरे भागते क़दमों को
थाम दिया था तुमने
इक भूल की इतनी सज़ा नहीं हो सकती
जिसकी क़ीमत मुझसे अदा नहीं हो सकती
हम पर भी उसकी रहमत के बादल बरसेंगे
ब ख़ुदा मेरे तुम्हारे ये मस’अले सुलझेंगे
जब उन सुहाने दिनों से अपनी
तन्हाइयाँ आबाद करोगी तुम
नज़्म कह रहा हूँ इसी इंतिज़ार में
कब मुझसे बात करोगी तुम….
# नज़ीर नज़र