Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
6 Apr 2024 · 2 min read

*अध्याय 2*

अध्याय 2
भतीजी का विवाह

दोहा

घर की नौका खे रहे, नाविक कुशल महान
एक तपश्चर्या-भरा, इसमें तत्व प्रधान
—————————————
1)
बड़ी हुई रुक्मिणि विवाह की चिंता घर में आई
लगे सोचने किस घर हो कन्या की मधुर विदाई
2)
वर सुयोग्य सर्राफे का व्यवसायी धनशाली था
नाम भिकारी लाल पूर्णतः दोषों से खाली था
3)
सुंदरलाल मुदित थे घर रुक्मिणि ने सुंदर पाया
जॉंचा-परखा देखा रिश्ता समझ ठीक ठहराया
4)
धूमधाम से कर विवाह दोनों निश्चिंत कहाए
सुंदर लाल-गिंदौड़ी देवी मानो तीर्थ नहाए
5)
छोटे भाई की आत्मा ने निश्चय ही सुख पाया
बेटी ब्याही देख गीत आत्मा तक ने है गाया
6)
धन्य-धन्य वह भाई जो भाई का भार मिटाते
धन्य भतीजी को बेटी से बढ़कर जो अपनाते
7)
बेटी ही थी, नहीं भतीजी कभी मान कर बोले
जब भी खोले द्वार हृदय के, पिता-तुल्य ही खोले
8)
सबसे बड़ा जगत में होता है कर्तव्य निभाना
ताऊ सुंदरलाल पिता ने भीतर तक यह जाना
9)
वह भाई जो जग में केवल अपने हित जीता है
भरें भले भंडार मगर वह सद्गुण से रीता है
10)
जग में श्रेष्ठ चरित्र वही जो औरों को अपनाता
जिसे भतीजी में बेटी, भाभी में दिखतीं माता
11)
ब्याह भतीजी का कर सुंदर लाल सदा हर्षाते
एक बड़ी जिम्मेदारी थी पूरी कर सुख पाते
12)
भरा और पूरा घर था, कन्या ने जो वर पाया
सभी तरह निर्दोष श्रेष्ठ कुल था हिस्से में आया
13)
बड़े भिकारी लाल, अनुज थे भूकन लाल कहाते
पिता स्वर्ग से रामसरन रह-रह आशीष लुटाते
14)
सास मिलीं श्रीमती कटोरी देवी ममता भरतीं
नववधु पर आशीष-प्यार सर्वदा लुटाया करतीं
15)
प्रथम हुई संतान सुकन्या नाम शांति रखवाया
नाना सुंदरलाल बने मन में असीम सुख पाया
16)
जो संतान दूसरी थी वह पुत्र-रूप में पाई
यह थे रामकुमार जगत में प्रतिभा शुभ दिखलाई
17)
बड़ा पुत्र ही घर का मुखिया नायक कहलाता है
सदा छत्रछाया में घर उसके पीछे आता है
18)
यह थे रामकुमार बड़प्पन जिनका कभी न छूटा
प्रथम पुत्र के कर्मों का क्रम जिनसे कभी न टूटा
—————————————
दोहा

जीवन की गति चल रही, सदा-सदा अविराम।
अवसर मिलते पुण्य के, इसमें भरे तमाम।।
—————————————
—————————————

Loading...