मुक्त कर के बन्धन सारे मैंने जीना सीख लिया
मुक्त कर के बन्धन सारे मैंने जीना सीख लिया
पनघट पर जा कर मैंने तीर से नीर को देख लिया
जाना मैंने यही जीवन का सार है
लहरे सुख- दुख की आती जाती हजार है
स्थिरता नहीं जीवन
जीवन तो बस चलने का नाम है
बहना है नीर की तरह तीरों से टकराना है
पर रूकना नहीं है बस चलते जाना है
जैसे मुहाने पर एक छोटी सी धारा है
प्रवाहित हुई कोई नदियां
धीरे धीरे विस्तार करें जाने कितने रत्न भरे
जाने कितनों की पीर हरे बहती जाती है
वैसे ही तो जीना है वैसे ही तो जीना है
सुशील मिश्रा ‘क्षितिज राज ‘