मुक्तक
बुझ चुकी आग मेरे दिल की ज़माने पहले,
राख है बस जो हवा से ही बिखर जाती है,
रोज ढलते हैं यहाँ अश्क़ मेरी आँखों से,
हसरत-ए दीदार तो पलकों में ठहर जाती है ।
बुझ चुकी आग मेरे दिल की ज़माने पहले,
राख है बस जो हवा से ही बिखर जाती है,
रोज ढलते हैं यहाँ अश्क़ मेरी आँखों से,
हसरत-ए दीदार तो पलकों में ठहर जाती है ।