मुक्तक
1) प्रेम रंग से भरी , सर ज़मी चाहिए
दर्द को बाँट ले , आदमी चाहिए
स्वार्थ की आग में, ये चमन जल रहा
आदमी सा कोई , आदमी चाहिए ।।
2) यह भारत की मूलभाषा है,
सबने इसे स्वीकारा है,
संस्कृति और संस्कारों से,
सुरभित अमृतभाषा है,
देवभाषा संस्कृत की कोख ने,
इसको ही उपजाया है,
सरल , सभी सुन्दर शब्दों ने,
इसको खूब सजाया है ।।
3) हरी भरी इस वसुंधरा को,
ना करो यूँ बर्बाद,
शुद्ध हवा जल के बिन तुम,
कैसे रहोगे साफ़ ?
पेड़ पौधों से धरतीमाता,
करती है खुशहाल,
इसकी रक्षा नहीं हुई तो,
नहीं बच पाओगे आप ।।