हिन्दी दोहे- चांदी
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
हम कुर्वतों में कब तक दिल बहलाते
कि मुझे सबसे बहुत दूर ले जाएगा,
23/182.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
जिस काम से आत्मा की तुष्टी होती है,
कहीं चीखें मौहब्बत की सुनाई देंगी तुमको ।
जिंदगी को जीने का तरीका न आया।
हे कौन वहां अन्तश्चेतना में
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
उसे पता है मुझे तैरना नहीं आता,
फूलों से भी कोमल जिंदगी को
शाखों के रूप सा हम बिखर जाएंगे
मेरे फितरत में ही नहीं है
*सड़क छोड़ो, दरवाजे बनवाओ (हास्य व्यंग्य)*
I lose myself in your love,