मुक्तक
तुझ पे जाना आंसू मेरे अभी तक
उधार है जब मिलना असल नहीं
सूद जरा चुकाते हुए जाना
तेरा नाम याद रखना था दिमाग को
मैंने दिल को पहरे पे बिठा रखा था,
इस बार आना तो नाम मिटाते जाना
~ सिद्धार्थ
तुझ पे जाना आंसू मेरे अभी तक
उधार है जब मिलना असल नहीं
सूद जरा चुकाते हुए जाना
तेरा नाम याद रखना था दिमाग को
मैंने दिल को पहरे पे बिठा रखा था,
इस बार आना तो नाम मिटाते जाना
~ सिद्धार्थ