“मित्रों की निष्ठुरता”
“मित्रों की निष्ठुरता”
मेरा तो दिल ही कहता है सभी से बात मैं कर लूँ !
किसी को अपने ही खत से जिगर के पास मैं कर लूँ !!
लिखा मैं खत जो लोगों को किसी ने उसको ना देखा !
अधूरी रह गयी चाहत किसी ने कुछ नहीं पूछा !!
सभी हैं मौन इस जग में नहीं संवाद ही करते !
सभी हैं व्यस्त जीवन में नहीं पहचान ही करते !!
@ डॉ लक्ष्मण झा परिमल