*मिट्टी का यह ढेला (भक्ति-गीत)*
मिट्टी का यह ढेला (भक्ति-गीत)
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काहे करता गर्व देह पर ,मिट्टी का यह ढेला
(1)
पता नहीं कब सोते – सोते यह साँसें रुक जाएँ
अथवा चलते-चलते ही सब क्षमताएँ चुक जाएँ
पड़ा हुआ होगा जमीन पर ,जहाँ रात – दिन खेला
काहे करता गर्व देह पर ,मिट्टी का यह ढेला
(2)
चार दिवस के संगी – साथी ,चार दिवस की हस्ती
चार दिवस की घर के अंदर – बाहर की सब मस्ती
चार दिवस के लिए जुड़ा है ,जग का यह सब मेला
काहे करता गर्व देह पर ,मिट्टी का यह ढेला
(3)
क्या जोड़ा क्या पाया तूने ,क्या खोया क्या हारा
जोड़ घटाना गुणा भाग है ,बेमतलब का सारा
आया खाली हाथ जगत में ,खाली चला अकेला
काहे करता गर्व देह पर ,मिट्टी का यह ढेला
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451