माहौल में
मदफ़न सुखन तस्दीद के माहौल में
या’नी लहू तस’ईद के माहौल में
ओढ़ता हूँ किरदार कई कई अफसानों का
मिलो मुझसे नहीं तुम ख़ुर्शीद के माहौल में
हो गया इक फ़तवा जारी क़ाफ़िर का मुझपे
लिखने बैठा जो रास्त तमजीद के माहौल में
ये त’अल्लुक़ – ए – ख़ातिर ये खुदा ये जन्नत
सब फूजूल ओ बातिल तस्वीद के माहौल में
यक़ीन है मुझे अलैहिदगी गला घोटेगी मिरा
बना रहा नया रास्ता तक़लीद के माहौल में
ऑपन माइक मुशायरा सब नुमाईस ए हुनर है
असल सुखन गोई होती तनक़ीद के माहौल में
आख़िर अश्क़ छलकते भी क्यों कर निगाह से
मैं शेर सारे सुना रहा था यार बे-दीद के माहौल में
कुछ नहीं बचेगा खाक हो कर रह जाओगे मियाँ
जा रहे हो उसका रु पढ़ने ता’क़ीद के माहौल में
हर इक हर्फ़ को अपनी नायाब म’आनी हासिल है सो
जा रहा लाने पहले पहल खुदको तज्वीद के माहौल में
वैसे तो कोई छु भी नहीं सकता इक कतरा भी कुनु वैसे
मारा जाऊंगा उसका ख्वाब देखते हुए नींद के माहौल में