मां से ही तो सीखा है।
माला में ये मोती पिरोना,
मोती बिखेर कर फिर रोना।
मां के आंचल में दुबक कर सोना,
मां से ही तो सीखा है।।
सुई धागे से फुलकारी बनाना,
बचपन का प्यार और लोरी सुनाना।
यूं डाटना सब मिर्ची सा तीखा है,
मां से ही तो सीखा है।।
पल- पल, छिन- छिन लाड लडाना,
लुकाछिपी के खेल में छिप जाना।
उसका वात्सल्य चंदन सरीखा है,
मां से ही तो सीखा है।।
छोटे बड़ों से मेल- मिलाप बढ़ाना,
गुरुजनों को हाथ जोडकर शीश झुकाना।
मां ही मे भगवान को देखा है,
मां से ही तो सीखा है।।
थोड़े में ही काम चलाना,
मिल- बांट करके सबको खिलाना।
न देना किसी को धोखा है,
मां से ही तो सीखा है।।
सतपाल चौहान ।