मातृभाषा
थकती हैं संवेदनाएँ जब
तुम्हारा सहारा लेता हूँ,
निराशा भरे पथ पर भी
तुमसे ढाढ़स ले लेता हूँ,
अवसाद का जब कभी
उफनता है सागर मन में
मैं आगे बढ़कर तत्पर
तेरा आलिंगन करता हूँ,
सिकुड़ता हूँ शीत में
जब कभी एकाकीपन की
खींच लेता हूँ चादर सा तुम्हें
गुनगुना मन कर लेता हूँ ।
जब कभी भी घबराता हूँ
अन्जान अक्षरों की भीड़ में,
ओ माँ, मेरी मातृभाषा,
तेरी गोद में जा धमकता हूँ ।।
@दीपक कुमारश्रीवास्तव नील पदम्