माटी के रंग
किसी गमले के
गुलाब की तरह नहीं,
हम उगे खेतों में
किसी फसल की तरह।
नहीं सींची हमारी जड़ें
माली के फव्वारों ने,
हमारी जड़ों ने
मेघों का सीना चीरकर
पीया पानी
किसी चातक की तरह।
हम माटी में जने
माटी में ही खेले
माटी में सने
माटी खाकर पले
इसलिए गहरा रिश्ता है
माटी से हमारा,
माटी के रंग हैं हमें
जान से प्यारा।
प्रकाशित काव्य-कृति : माटी के रंग
शीर्षक रचना की चन्द पंक्तियाँ।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत के 100 महान व्यक्तित्व में शामिल
एक साधारण व्यक्ति।