माँ
मां तुमसे बिछड़े, समय बहुत है बीता
अब भी लगता है अब तक सब रीता
तुम रामचरित मानस के दोहे दुहराती
कंठस्थ रहा करती थी भगवत गीता।
दिन – भर कामकाज करते न थकतीं ।
इन ग्रंथों की शिक्षाप्रद कहानी कहतीं ।
पाठशाला में अधिक नहीं पढ़ पायीं थीं,
लेकिन मुझे खेल में गणित पढ़ाया करतीं
उनके हाथों में कितना स्वाद छिपा रहता ।
व्यंजन की खूशबू से घर महका रहता।
किसी चीज़ की कमी नहीं होने पाती
अन्नपूर्णा के नाम से हर कोई बुलाता
आंचल की छांव देकर ममता बरसाती।
गोदी में सर रख लें, हर व्यथा हर जाती
चेहरे पर फूल खिलते सदा मुस्कानों के
सिर्फ उसके रहने से घर में रौनक आती।
काश वो बीता समय लौट कर आ जाए।
मां के संग और भी रहने को मिल जाए।
मैं जब सपनों में उनकों देखूं, बात करूं,
मां सामने हो वो सब सपने सच हो पाए।
डॉअमृता शुक्ला