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30 Jan 2024 · 1 min read

दास्तान-ए-दर्द!

इन उजड़ी राहों से कैसे गुज़र पाया होगा
उसका दर्द कहाँ कोई समझ पाया होगा!

किसी तूफ़ान का अंदेशा तो पहले ही था
तबाही बताती है कोई तूफ़ान आया होगा!

उसके दर्द-ओ-ग़म की सदाएँ कौन सुनता
सब ख़्वाबों को दिल में ही दफ़नाया होगा!

जिस शख़्स ने फ़िज़ा में नफ़रत फैलाई है
सुकून छीनने का उसने धंधा बनाया होगा!

कौन है जो दास्तान-ए-दर्द की वजह बना
बेगैरत सुकून की नींद कैसे सो पाया होगा!

हर शख़्स जानबूझकर अनजान बना यहाँ
ब-मजबूरी-ए-हालात ने बस सुझाया होगा!

Language: Hindi
82 Views
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