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4 May 2024 · 1 min read

जब तक हो तन में प्राण

जब तक हो तन में प्राण
जुबाँ पर हो एक तेरा नाम

गिरने जो लगूं तो संभाल लेना
रोने जो लगूं तो हँसा देना

किसी को सिसकते देखूं तों
चल पडूँ राह इंसानियत की

दिल में तेरी इबादत का जूनून
होठों पर तेरा नाम हर पल

जहां भी देखूं बस तू ही तू हो
तेरे बन्दों में , इस कायनात के हर ज़र्रे में तू

तेरी इस पाकीजा निगाह का करम मुझ पर जो हो जाए
जीते जी मुझे जन्नत नसीब हो जाए

तू इस जमीं का मालिक , उस जन्नत का भी
जिस पर हो तेरा करम , उसका बेड़ा पार हो जाए

किसी की झोपड़ी में . किसी के आलीशान महल में तू
दिलों को करता है रोशन , वो खैरख्वाह है तू

लिखता है नसीब , बगैर कलम स्याही के तू
इंसानियत की राह जो चले , उनके साथ हर पल है तू

जब तक हो तन में प्राण
जुबाँ पर हो एक तेरा नाम ||

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

Language: Hindi
22 Views
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