माँ
अंधेरी ज़िन्दगी का मेरी……… बस वही उजाला है ।
माँ की दुआओं ने हर दफ़ा मुश्किलों से निकाला है ।।
जब भी गिरता हूं, लड़खड़ाता हूं दुनियावी सफ़र में ।
हौसलों को मेरे …………… बस माँ ने संभाला है ।।
बेस्वाद सारी नेमतें….. दुनिया की लगती है मुझको ।
लज़्ज़तदार उसके हाथ का……एक एक निवाला है ।।
उसके बिना ज़िन्दगी-…………….. बेनूर, बेरंग मेरी ।
अपनी हर सांस को,………… उसके रंग में ढाला है ।।
©डॉ वासिफ काज़ी, इंदौर
©काज़ी की कलम