माँ
एक बच्चा जो अपनी माँ से बिछड़ कर कहीं बाहर रह राहा है और वह माँ को याद करते हुए एक कविता इस प्रकार लिखता है और अपना प्यार माँ के प्रति व्यक्त करता है…………….मेरी कलम से
✍कवि दीपक सरल
माँ एक बार मेरे पास आ जा ना माँ,
अपने हाथ से रोटी खिला जा ना माँ ,
दुनिया में कोई अपना नहीं ये बता जा
सर अपनी गोद में रखकर सुला जा ना !
तू फुक मार के मेरी चोट को ठीक कर
मुझे बुखार तो नहीं ये बता जा ना माँ ,
मतलब की दुनिया से ऊब गया हूँ मैं..
एक बार सीने से लगा जा ना माँ…. !
मेरा जन्म दिन भी अभी आने वाला है..
मुझे अपने हाथ से केक खिला जा ना..,
मैं बहुत मेहनत कर रहा हूं……………
माँ के साथ दुनिया घूमनी है ना ……..!
अभी मेरे दिन अच्छे आने वाले है……
मेरे साथ तू खुशियों बना जा ना माँ….,
मैं तुझे बहुत प्यार करता हूं ना माँ……
तू मुझे कभी छोड़ कर मत जाना माँ… !
मेरे साथ बैठ, कई लम्हे गुजर जाने दे…
तू अपनी ख़्वाइस मुझे बता न माँ…….,
मेरे लिए तूने बहुत कुछ किया है…….
जरा अब तो तू खुशियां बना न माँ……!
तू खुस है तो मेरी दुनिया खुस लगती है.
तेरे बिना ये मेला बिरान है माँ ……….,
मैने रोटी खाई या नहीं तू ही पूछती है माँ
तेरी उमर हमें बड़ा करने में निकल गई..!
थोड़ी अपनी भी फिकर करा कर माँ….
मुझे तू दुनिया मैं हारने से बचा ना माँ…,
तेरा हाथ जब तक मेरे हाथ में है……..
डर नहीं मुझे कौन कौन खिलाफ मैं है.!
बस में आए दुनिया जीत लाउ तेरे लिए..
अपना आशीर्वाद सर पर थमा न माँ….. ,
माँ तू कहती है मैं अभी बच्चा हूं……….
ये दुनिया मुझ पर तरस नहीं खाती है….,
मुझे हर मंजिल पे बार बार गिराती है…
ऐसा नहीं करते तू ये बता ना माँ………!
मेरे जेब में पैसे नहीं,पापा से दिला ना माँ.
याद है मुझे साइकिल भी दिलानी है….. ,
मुझे बहुत सारे खिलौने भी लेने हैं अभी.
पापा से सिफारिश लगवा दे ना माँ…… !
कोई रिस्तेदार आए तो पैसे देकर जाए.
बेटा बहुत अच्छा है उन्हें ये तू बताना माँ.,
ये दुनिया मुझमें बहुत ऐब निकलती है…
मैं कैसा हूं दुनिया को ये बता ना माँ …..!
तेरे लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है.
तेरे लिए कई रोतो से लड़ना बाकी है….,
अभी मंजिल हमारी बीच में है………….
अभी सपना पूरा करना बाकी है मां……!
तू चिंता मत कर मैं सब संभाल लूंगा…..
सब परिस्थियों के मुताबिक ढाल लुंगा…,
तू भरोसा रखना मुझ पर मैं हूँ ना माँ..
मैं रातों से सबेरा निकाल लुंगा माँ ….!
दिल से जुड़ा रिश्ता कोई नहीं है…….
तेरे सिवा तेरे जैसा कोई नहीं है…….,
तू मेरे साथ बैठ ना इक दिन…………
मैं तुझको सारा हिसाब दूंगा माँ………!
मेरी पसंद नापसंद कोई ओर क्या जाने.
मेरे खाने की तलब मिटा जा ना माँ……,
हजारो रुपये होटल पर गवा कर देखे हैं.
तेरे जैसा स्वाद कहा आता है माँ…….. !
खुशियों के लिए कितनों से लोहा लिया है
उलझे मुकद्दर को कितनी बार सिया है…,
हमारे खातिर सुबह सुबह जग जाती है… सुबह होते ही काम पर लग जाती है….. !
बिना पगार के सारे फर्ज निभानी है……
क्या बताऊ कहा से आती है माँ……….!
ये दुनिया हमेशा पैसे से मोल करती है..
तेरी नजरो में मेरे क्या मोल है मां……. ,
दुनिया ये सुनती नहीं है मेरी ………….
मेरी कीमत दुनिया को बता जा ना माँ…!
तूने हमेशा खुशियों के लिए कुर्बानी दी है
तू एक बार खुलकर मुस्कुरा ना माँ…….,
मुझे थर्मामीटर पर भरोसा होता नहीं…..
बुखार तो नहीं हाथ पकड़ कर बता ना..!
अलार्म रात मैं जब भी भर के सोता हूं….
उठकर अलार्म मैं बंद कर देता हूं……….,
मुझे कल सुबह स्कूल भी जाना है………
मुझे तू जल्दी जगा जा ना माँ…………. !
मेरे स्कूल में अध्यापक बहुत मारते हैं…..
उनको एक बार समझा दे ना माँ ………,
मुझे जल्दी जल्दी छुट्टी दे देंगे…………..
मेरे साथ स्कूल चल दे ना माँ……………!
मुझे अभी भी यू बच्चा समझती है…….
फिर भी ये क्या होता है जा रहा है……,
मेरे कपड़े छोटे होते जा रहे हैं…………
या मैं बड़ा होता जा रहा हूं माँ ………..!
मेरे कपडे बड़े संभाल के रखे है तूने….
मेरे बढती उम का हिसाब है तेरे पास….,
3 बोलता हूं रोज 4 रोटी रख देती है…..
क्या तुझे गिंनती नहीं आती है माँ……..,
बच्चे भूखे ना रह जाए रहे जाए तेरे……
खुद ठीक से नहीं खाती है माँ…………!
मेरा नसीब मैं सब अच्छा ही होगा…….
मेरे लिए तू खुदा से लड़ जाति है माँ….,
जब मैं रात को सो नहीं पाता………….
तू अपनी नींद गबाती है मां…………….!
डॉक्टर, टीचर, बने, मेरे लिए तू………
क्या क्या बन जाती है माँ…………….,
जन्म देने में मौत से लड़ जाती हैं…….,
तब जाकार हमारे देहे में प्राण लाती है.!
दुख का आलम कोई या कोई बात हो….
बिना बताए माँ सब समझ जाती है…….,
अपनी थाली का भी हिस्सा वो……..
बच्चों को बाटकर खिला देती है माँ…..!
ऐसा भी अब कौन भला कर सकता है…
माँ हो साथ जुगनू अंधकार हर सकता है,
अंधेरों का आलम है सूरज सी सुबह कर
सर्दीयों की रातो से हमें बच्चा जा ना माँ.!
बार बार पैर मारकर कंबल हटा दैता हुॅ..
माँ फिर फिर मुझे कंबल उड़ा दे ………,
बच्चे को ना लग जाए सर्दी…………..
उसकी खातिर अपनी नींद गवाती है….. !
मजबूर होकर ही मेरा दिल जुड़ा हुआ है.. पत्ता कब राजी से पेड़ से जुदा हुआ है..,
मुझको नोकरी तुझसे जुदा किया है……
तू एक बार यहां भी आ जा ना माँ……!
✍कवि दीपक सरल