माँ
माँ जीती सन्तान के लिए
और मृत्यु को होती प्राप्त ।
जब तक जीती उसके मन में
वात्सल्य रहता है व्याप्त ।।
माँ की ममता, वात्सल्य की
कद्र न करती जो सन्तान,
उसका जीवन शापित होता
पाती है वह कष्ट महान ।।
माँ जैसा कोई न अन्य है
माँ की महिमा अगम अकूत ।
नर से लेकर नारायण तक
माँ ही करती सदा प्रसूत ।।
आओ हम माँ के गुण गाएँ
दें उसकी सेवा पर ध्यान ।
माँ की डाँट-डपट को भी हम
मानें ईश्वर का वरदान ।।
होना ही चाहिए सभी को
अपनी अपनी माँ पर गर्व ।
माँ को प्रणति निवेदन करके
हम सब सदा मनाएँ पर्व ।।
© महेश चन्द्र त्रिपाठी