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29 Nov 2018 · 1 min read

माँ

माँ
~~
सकल जगत में तुझसा माँ,
होता है क्या कोई।
मुझे सुलाने यहाँ चैन से,
तू रात भर न सोई ।।

चलती जब खाना बनाने,
आँगन करके बिछात।
शिकन न तनिक भाल पर,
स्वेदयुक्त निज गात।।

तपित तवे से जलकर तेरे,
हाथों में हो जाते घाव।
पर सबको खाना खिलाने का
मन में अनहद चाव ।

भाँत-भाँत के भात बनाती,
दाल,सब्जी और रोटी।
प्यार से फिर वो पास बुलाती,
आजा मुन्ना,आजा छोटी।।

हो जाऊँ चाहे कितना बड़ा,
तेरे लिए रहूँ मैं बच्चा।
इस दुनिया में होता है यारों,
माँ का प्यार ही सच्चा।

स्वलिखित,मौलिक रचना

मानसिंह राठौड़
बाड़मेर, राजस्थान
9166220021

13 Likes · 61 Comments · 1082 Views
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