उसका चेहरा उदास था
आज जाने क्यों उसका चेहरा उदास था।
गुम जाने क्यों अब,उसका होशोहवास था।
गैरों से कम,अपनों से मिले ज़ख्म थे ज्यादा,
चुप रह कर ,बस यहीं लगाता कयास था।
आंसूओं का इक दरिया बहता है मेरे अंदर,
फिर भी जाने क्यों, लब पर इक प्यास था।
शाम ढले हर पंछी,घर अपने वापस आये
मेरी किस्मत में जाने क्यों लिखा प्रवास था।
दुश्वारियां है, फिर भी दिल मरना नहीं चाहता
पता नहीं किसका ख्याल देता धरवास है।
सुरिंदर कौर
कयास—कल्पना करना , हिसाब लगाना
धरवास–हौंसला देना