माँ
विषय-: माँ
विधा-: पद्य छन्दमुक्त
गिरने से पहले थाम लेती है,
फिसलने से पहले संभाल लेती है।
मैं लाख छुपाउं, मेरे माथे की-
शिकन पहचान लेती है।
बिन बताए मेरी तकलीफ की,
वजह जान लेती है।
मेरे भूख प्यास के लिए,
मेरे आगे पीछे भागती है।
मेरी परीक्षा के लिये अलार्म-
की तरह रात भर जागती है
मेरी एक कामयाबी पे,
मुहल्ले को मिठाइयां बाँट देती है।
अपने ग़मों से मेरे लिए ,
खुशियां छांट लेती है।
मेरे स्वास्थ्य की चिंता में,
स्वयं अधमरी हो जाए।
काजल के टीके में टोटका,
आस्वस्त गहरी हो जाए।
टूटने से पहले थाम लेती है ,
ज़िंदगी की डोर!
सचमुच “माँ” होती है-
‘बुरी बलाओं, की शातिर चोर!!
शकुन्तला शेंडे(शकुन)
शहर -बचेली
छत्तीसगढ़