माँ
माँ
माँ को होती तीसरी ऑंखें
बालक का दिल उसमें झाँके
बच्चों की हर आहट माँ पहचाने
उसकी हर सांसो को जाने.
ताल-छंद छौने के वो जाने
उसके सरगम के सुर पहचाने
सरगम के सुर जहाँ कटे
माँ का ध्यान झट बटे .
मिल जाए माँ का स्पर्श
हर विध्न से कर ले संघर्ष
जीवन बन जाए सुखदायी
पास जब हो माँ आनंददायी .
माँ है जीवनदायिनी
हर सुख प्रदायिनी
सर्व कष्ट निवारिणी
उज्ज्वल पथ प्रदायिनी
शुभ्रा श्रीवास्तव
पटना (बिहार )