माँ मुझे जवान कर तू बूढ़ी हो गयी….
मुझे जवान कर माँ तू बूढ़ी हो गयी,
मुझे व्यस्त कर माँ तू फ्री हो गयी,
मेरा पेट भर तू खाली पेट ही सो गयी,
चोट मुझे लगी और दर्द तू ले गयी…..
तू अनपढ़ ही रही मुझे डिग्री करा दी,
पंख काट अपने मुझे उड़ने की कला सिखा दी,
ठोकर मुझे लगी पैर में घाव तेरे हुआ,
मेरी हार में तू रोयी और जीत मेरे सिर सजा दी….
खुद को अकेला कर मेरा अकेलापन दूर कर लिया,
मेरी खुशियों के लिए खुद को मुझसे दूर कर लिया,
मैं पढ़कर भी अनपढ़ ही रहा और तू अनपढ़ होकर सब समझती रही,
तेरी सीख को मैं गलतियाँ मानता रहा तू मेरी गलतियाँ माफ करती रही….
मैं एक कदम भी आगे ना देख पाया तू मेरा पूरा भविष्य देखती रही,
मोतियाबिंद तूने लिया और मेरे आँखों में रोशनी देती रही,
माँ तू इंसान थी या भगवान,
मैं पत्थरों को पूजता रहा और तू चोट खाते हुए मेरे पत्थर हृदय को तराशती रही…..
prAstya……(प्रशांत सोलंकी)