माँ मत मार उदर में
***माँ मत मार उदर में***
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माँ मत मार मुझे यूँ उदर में
जन्म लेना चाहूँ मैं जठर में
पुत्र चाहत में क्यों करे पाप
बेटी को क्यों रोके अधर में
रंग देखना चाहूँ दुनिया के
पैदा करे अवरोध सफर में
बेटियाँ न कमत्तर बेटों से
कैसे क्यों रहे फर्क नजर में
भ्रूणहत्या है पाप से बढ़कर
भ्रूण की क्यों जाँच नगर में
पुत्र की शादी होगी किससे
पुत्री जो नहीं होगी सदर में
औरतें ही औरत की दुश्मन
पुत्रमोह लालच है जिगर में
मनसीरत सुता बिना अधूरा
नन्दिनी बिना मानस हिज्र में
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)