माँ-बाप का मोह, बच्चे का अंधेरा
माँ-बाप का मोह, बच्चे का अंधेरा
ज्ञान-बुद्धि का मोह, रैंक का दबाव, बच्चे का मन, होता है घायल। कक्षा में सबसे आगे, यही है लक्ष्य, आत्मा-मन-व्यक्तित्व, सब पीछे छूट जाते।
ज्ञान-बुद्धि की दौड़ में, बच्चे दौड़ते हैं, पर भावनाओं का विकास, रुक जाता है। अंतर्मन की आवाज, दब जाती है, बच्चे का व्यक्तित्व, खो जाता है।
माँ-बाप का मोह, बच्चों को अंधा बनाता है, रैंक और नंबरों का, बोझ उन पर लादता है। सच्चा विकास कहाँ, इस भागदौड़ में, बच्चे का जीवन, हो जाता है क्षीण।
समय रहते जागो, माँ-बाप बनकर, बच्चे का मन, समझो, प्यार से गले लगाकर। ज्ञान-बुद्धि के साथ, भावनाओं का विकास, यही सच्चा शिक्षा, यही सच्चा विकास।
बच्चे का मन, एक बगीचा है, जिसमें भावनाओं के फूल खिलते हैं। प्यार और देखभाल की धूप में, बच्चे का व्यक्तित्व, खिलता है।
माँ-बाप का कर्तव्य है, बच्चे के मन को समझना, उसकी भावनाओं का सम्मान करना, और उसे एक बेहतर इंसान बनाना।
यह कविता आज के दौर में माँ-बाप के मोह और बच्चों के विकास के बारे में है। माँ-बाप अपने बच्चों को ज्ञान-बुद्धि और रैंक में आगे रखने के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन उनकी भावनाओं और व्यक्तित्व के विकास पर ध्यान नहीं देते हैं। यह कविता माँ-बाप को बच्चों के मन को समझने और उन्हें एक बेहतर इंसान बनाने के लिए प्रेरित करती है।