माँ क्रोधित हैं छोड़ दिये सोलह श्रंगार ( कन्या,नदियाँ, धरती,गौ )
माँ
माँ क्रोधित हैं,छोड़ दिये सोलह श्रंगार।
लेके आयी हैं मैया, अब चंडी अवतार।।
नौ दिन कन्या को माँ रूप माना।
दसवे ही दिन से फिर तांके जमाना।
जब बेटी पर देखा जो होते दुराचार।
मैया शेरों पे बैठी, लिये तलवार।।
माँ क्रोधित हैं——
गंगा ,नर्मदा और यमुना भी दूषित।
पूजा सामग्री और नाले करते प्रदूषित।।
जहाँ बहती थीं ,नदियां बची पतली धार।
सृष्टि संकट में,चिंता में हैं पालनहार।।
माँ क्रोधित हैं——
चुनरी चढ़ाई और ज्योत जलायी।
मंत्र पढ़े फिर क्यों माँ नहीं आयी।।
देखा जैसे ही वृक्षों को कटते अपार।
दौड़ी सुनते ही धरती की करुण पुकार।।
माँ क्रोधित हैं——
सड़कों पर गौ माता भूखी रम्भावें।
घी,दूध,खीर, भोग मुझे न सुहावे।।
मेरी पूजन तुम छोड़ो उसे बांधो द्वार।
वो ही करती उद्धार है ,वैतरणी पार।।
माँ क्रोधित हैं ——-
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव
p/s खिरैंटी
साईंखेड़ा