Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Apr 2022 · 4 min read

महाकवि नीरज के बहाने (संस्मरण)

महाकवि नीरज नहीं रहे। उनसे कोई व्यक्तिगत परिचय नहीं था, परंतु लेखन में रूचि और साहित्य से बचपन से ही गहरा लगाव होने के कारण उनका जाना मन में एक अनकही सी रिक्तता दे गया । सोच रही हूँ उनका जाना वास्तव में जाना है अथवा होना है।सच कहें तो यह जाना जाना है ही नहीं और न ही ऐसा होना संभव है क्योंकि जब किसी सामान्य व्यक्ति के इस तरह जाने की बात आती है तो जाता वह व्यक्ति भी नहीं है। वह तो बना रहता है उन व्यक्तियों की स्मृतियों में जो जीवन-यात्रा में किसी न किसी रूप में उससे जुड़े होते हैं और कवि नीरज जैसे व्यक्तित्व तो जा ही नहीं सकते, वे सबके बीच सदैव उपस्थित रहते हैं अपने कार्यों, अपनी रचनाओं के माध्यम से।
ऐसे व्यक्तित्व जीवन-मृत्यु की सीमा से‌ ऊपर होते हैं। जब-जब समाज उन्हें सोचता है, महसूस करता है। वह समाज के बीच होते हैं अपने कार्यों, अपने गीतों के रूप में। और यही वह उपलब्धि है जो एक साधारण व असाधारण व्यक्ति के बीच का अंतर है। साधारण व्यक्तित्व सिमटकर रह जाता है मात्र कुछ स्मृतियों तक किन्तु असाधारण व्यक्तित्व छा जाता है पूरे समाज, पूरी दुनिया पर। उसका जाना सिर्फ उसकी देह का
जाना भर है और देह तो नश्वर है। उसे तो मिटना ही है। जाना सभी को है। परंतु जायें किस तरह यह महत्वपूर्ण है।
कवि नीरज को बचपन से सुना, उनसे मिलते रहे उनके गीतों के रूप में ‌। उनसे व्यक्तिगत परिचय तब भी नहीं था। आज भी नहीं है। किन्तु तब भी उन्हें गुनगुनाते रहे, आज भी गुनगनाते हैं, आगे भी गुनगनाते रहेंगे ।
अभी लगभग एक वर्ष पहले ११ सितम्बर २०१७ की रात अचानक मेरी तबीयत बिगड़ी और मैं आइ० सी० यू० में पहुँचा दी गयी। निमोनिया का तीव्र अटैक था। बात वेन्टीलेटर पर रखने तक पहुँची। दस दिन हास्पिटल में सिर्फ आक्सीजन,दवाओं, ग्लुकोज आदि के सहारे डाक्टरों के बीच बीते। उसरात मौत को बेहद करीब से देखा । बस एक धड़कन का फासला भर था जो कभी भी थमकर जिंदगी की डोर काट सकती थी। रात के लगभग एक बजे या उसके आसपास तबीयत बिगड़ी, घर से लाइनपार नर्सिंग होम, फिर कोसमोस
हास्पिटल, फिर विवेकानन्द हास्पिटल कुछ ही समय में सारी दूरियाँ तय होती गयीं। परिवारजन एवं परिचित हास्पिटल में आइ० सी० यू० के बाहर और भीतर डाक्टर ‌अपनी कोशिशों में व्यस्त और इन सबके बीच स्वयं मैं, मौत को महसूस करते हुए। डूबती‌ सांसों के बीच सोचते हुए ; क्या इस रात की सुबह मेरी जिंदगी लायेगी या फिर मेरे लिए सब कुछ यहीं ठहर जायेगा। शायद पढ़नेवालों को यह अविश्वसनीय लगे परंतु मैं
इस विषम परिस्थिति में भी सामान्य रूप से सोचसमझ‌ रही थी। मैंने टूटती सांसों के बीच भी परिवारजनों को आवश्यक निर्देश दिये। साथ ही मन ही मन में चिन्तन चल रहा था कि जिंदगी के जो इतने वर्ष मुझे ईश्वर द्वारा प्रदान किये गये, वे किसी योग्य थे भी, क्या मुझसे कोई एक भी ऐसा कार्य कभी हो पाया कि मेरे बाद कोई मेरे बारे में सोचे ? वास्तव में जिंदगी और मौत के बीच झूलती वो रात बहुत महत्वपूर्ण थी। एक पूरे दर्शन से भरपूर, बहुत कुछ समझाती और सिखाती हुई।
वैसे ऐसा मोड़ मेरी जिंदगी में दूसरी बार आया था। इससे पहले जब ऐसा हुआ था, तब मेरी उम्र मात्र १८-१९ वर्ष थी। तब भी मैं मौत के इतने ही करीब जाकर लौटी थी। परंतु उस‌ वक्त इतना सब महसूस नहीं कर पायी थी। शायद उम्र व अनुभव का अन्तर था। इस बार हास्पिटल के उन दस दिनों में बहुत कुछ सोचा,‌ समझा, महसूस किया जिसे सबसे बांटना चाहती थी।
आज नीरजजी के बहाने यह सब लिख डाला। पता नहीं, सही या गलत। मन के भावों को अभिव्यक्ति मिल गयी । कवि नीरज या उन‌ जैसे अन्य कुछ लोग भले ही मेरे लिए अपरिचित हो परंतु इतना तो सत्य है कि जो व्यक्ति समाज अथवा किसी उद्देश्य से जुड़ा होता है। उसकी अपनी एक सामाजिक पहचान भी होती है,‌ जो देह से परे एक अलग रूप में उसे सामाजिक रूप में जीवित रखती है। इसलिए मेरे विचार में हम सभी जिन्हें ईश्वर ने मानव-देह का आशीर्वाद दिया, इस देह को एक पहचान अपने सद्कर्मों द्वारा देने की कोशिश करनी चाहिए। इस स्वीकारोक्ति के बहाने कि कवि नीरज जैसे व्यक्तित्व तो देह-त्याग के पश्चात भी अपने गीतों के माध्यम से दुनिया में अपने तमाम गुणों व अवगुणों के बावजूद अपनी एक पहचान पीछे छोड़ गये हैं परंतु क्या हम भी ऐसे किसी मुकाम, किसी पहचान का दावा रखते हैं? कवि नीरज को व्यक्तिगत रूप से न जानते हुए भी उनके उन गीतों के प्रति विनम्रतापूर्ण नमन जो उनकी लेखनी से निकलकर जनमानस के हृदय में बस गये।

:- (विनम्रतापूर्वक एक‌ नन्हीं कलम से सभी गुणीजनों के समक्ष)
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक :- २०/०७/२०१८.

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 361 Views
Books from Kanchan Khanna
View all

You may also like these posts

गुनाह है क्या किसी से यूँ
गुनाह है क्या किसी से यूँ
gurudeenverma198
Shankar Dwivedi (July 21, 1941 – July 27, 1981) was a promin
Shankar Dwivedi (July 21, 1941 – July 27, 1981) was a promin
Shankar lal Dwivedi (1941-81)
हंस रहा हूं मैं तेरी नजरों को देखकर
हंस रहा हूं मैं तेरी नजरों को देखकर
भरत कुमार सोलंकी
ये पीड़ित कौन है?
ये पीड़ित कौन है?
सोनू हंस
हर सुबह जन्म लेकर,रात को खत्म हो जाती हूं
हर सुबह जन्म लेकर,रात को खत्म हो जाती हूं
Pramila sultan
कपट नहीं कर सकता सच्चा मित्र
कपट नहीं कर सकता सच्चा मित्र
Acharya Shilak Ram
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
ये जिंदगी गुलाल सी तुमसे मिले जो साज में
ये जिंदगी गुलाल सी तुमसे मिले जो साज में
©️ दामिनी नारायण सिंह
I don't listen the people
I don't listen the people
VINOD CHAUHAN
वो चुपचाप आए और एक बार फिर खेला कर गए !
वो चुपचाप आए और एक बार फिर खेला कर गए !
सुशील कुमार 'नवीन'
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
नशा
नशा
राकेश पाठक कठारा
"शमा और परवाना"
Dr. Kishan tandon kranti
" पलास "
Pushpraj Anant
शेर
शेर
Abhishek Soni
हरियाली तीज।
हरियाली तीज।
Priya princess panwar
उमड़ते जज्बातों में,
उमड़ते जज्बातों में,
Niharika Verma
लोकतन्त्र के मंदिर की तामीर बदल दी हमने।
लोकतन्त्र के मंदिर की तामीर बदल दी हमने।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
25. Dream
25. Dream
Ahtesham Ahmad
नारी-शक्ति के प्रतीक हैं दुर्गा के नौ रूप
नारी-शक्ति के प्रतीक हैं दुर्गा के नौ रूप
कवि रमेशराज
इश्क़ लिखने पढ़ने में उलझ गया,
इश्क़ लिखने पढ़ने में उलझ गया,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
आप वो नहीं है जो आप खुद को समझते है बल्कि आप वही जो दुनिया आ
आप वो नहीं है जो आप खुद को समझते है बल्कि आप वही जो दुनिया आ
Rj Anand Prajapati
सुरक्षित भविष्य
सुरक्षित भविष्य
Dr. Pradeep Kumar Sharma
गुलाब
गुलाब
लोकनाथ ताण्डेय ''मधुर''
हिजरत - चार मिसरे
हिजरत - चार मिसरे
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
प्रेम पाना,नियति है..
प्रेम पाना,नियति है..
पूर्वार्थ
कुरसी महिमा धत्ता छंद
कुरसी महिमा धत्ता छंद
guru saxena
नव वर्ष
नव वर्ष
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
स्वतंत्रता दिवस और सेकुलर साहेब जी
स्वतंत्रता दिवस और सेकुलर साहेब जी
Dr MusafiR BaithA
आषाढ़ के मेघ
आषाढ़ के मेघ
Saraswati Bajpai
Loading...