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26 Mar 2024 · 1 min read

*मस्ती बसती है वहॉं, मन बालक का रूप (कुंडलिया)*

मस्ती बसती है वहॉं, मन बालक का रूप (कुंडलिया)
_________________________
मस्ती बसती है वहॉं, मन बालक का रूप
जिसे न कोई चाह है, समझो उसको भूप
समझो उसको भूप, खुशी भीतर से पाता
जो मिलता परिवेश, मगन उसमें हो जाता
कहते रवि कविराय, महक मन की अति सस्ती
बिना खर्च का खेल, मिली निश्छल को मस्ती
—————————————-
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

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