कश्मकश
ज़िन्दगी जब टुकड़ो में बँट जाये
जब दिल किसी एक जगह ना रह पाये
तो लगे रो दू मैं!
जब किसी एक फैसले पर ना पहुंच पाऊँ
जब किसी एक को ना चुन पाऊँ
तो क्या पाऊँ क्या खो दू मैं!
जब भेद ना कर पाऊँ लोगों में
दुनिया के सच्चे और झूठों में
तो किसे सच कह दू मैं!
जब मन ना लगे फरियादों में
रहने लगूँ सिर्फ यादों में
तो ऐसा क्या कर दू मैं!
जब सपने बटने लगे दो भागों में
दिल और दिमाग के हाथों में
तो किस ओर चल दू मैं!