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5 May 2024 · 1 min read

हर इश्क में रूह रोता है

#दिनांक:-5/5/2024
#शीर्षक:-हर इश्क में रूह रोता है।

सब साफ-साफ आज फिर दिख रहा,
बहुत दूर हूँ अतीत से,
फिर भी दिल दुख रहा ।
कमी नहीं थी उसमें,
न कमी की ढूंढ की मैंने,
सलोना सा सांवरा रंग,
डाला आकर सुकुन में भंग।
नहीं चाहती थी मैं मीरा बनूँ,
नहीं चाहती थी सितारा बनूँ।
पर समय भी अजीब करवट लेता है,
चैन को कहाँ चैन देता है?
इश्क कर मन मयूर झूम रहा,
दिल में हलचल मच रहा।
सुध-बुध खोई नींद खोई,
सपनों की बाँहों में रैन खोई।
आह!
सारा दिन सारी रात,
बात से उपजती बात।
फिर वही हुआ जो होता है,
हर इश्क में रूह रोता है।
किस्मत का बलशाली नहीं कारोबार,
गलतफहमी की होती हमेशा शिकार।
हर यंत्र का मंत्र जाप किया,
जादू टोने का उपाय किया।
हर प्रतिफल अपने आप मिला,
असफल प्रेम का ही श्राप मिला ।

(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई

Language: Hindi
18 Views
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