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12 Jun 2023 · 1 min read

मन मे फालतू के सवाल लिए फिरता है

झूठा दबदबा झूठा रूआब लिए फिरता है
वो फसादी है नया टकराव लिए फिरता है

भला समंदर भी किसी ने उलीचा है कभी
मन मे फालतू के सवाल लिए फिरता है

शहर के हाकिमों को मयस्सर नहीं है और
चमन का मुहाफिज गुलाब लिए फिरता है

बांटने वाले बांट रहे हैं नफ़रतों के पर्चे मगर
एक काफिर प्यार का पैगाम लिए फिरता है

हक की आवाज फलक से आयेगी जरूर
अब हर आदमी यही ख्याल लिए फिरता है

यहाँ न जिस्म है न साया बाकी है “आलम”
क्यों इन मंजारों पर चराग लिए फिरता है
मारूफ आलम

Language: Hindi
217 Views
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