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9 Apr 2024 · 1 min read

“मन-मतंग”

“मन-मतंग”
मन की थाह लागे ना कभी,
ना मन के आगे चले कोई जोर।
मन तो ठहरे बिन पंख का पंछी,
उड़े जब-जब ना होवे कोई शोर।

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