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24 Jan 2024 · 1 min read

फ़िरक़ापरस्ती!

फ़िरक़ापरस्ती के जाल बुनते फिरते हैं
फ़िरक़ों में बँटे नफ़रतें उगलते फिरते हैं!
कोई कम नहीं सभी तो बलवाई हैं यहाँ
उँगलियाँ दूसरों पर सब उठाते फिरते हैं!
हर तरफ़ ही तशद्दुद के पैरोकार भरे पड़े
मगर इलज़ाम दूसरों सर धरते फिरते हैं!
मुलज़िम खुद को मज़लूम बताकर यहाँ
कैसे इंसानियत की हामी भरते फिरते हैं!
मुक़द्दस बातों की ग़लत तफ़्सीर करते हैं
बेइल्म इल्म की बेअदबी करते फिरते हैं!
दावा करें वो खरे रहे ईमान के पैमाने पर
बेईमान औरों के ईमान जाँचते फिरते हैं!
इस तरद्दुद में बे-एतिबारी का आलम है
फ़िरक़ों में बंटे लोग दंगाई बने फिरते हैं!

Language: Hindi
58 Views
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