मन भारी है
बाहर के शोर पर मेरे मन का शोर भारी है,
इसको शांत करने की नही कोई तैयारी है।
जमाने की हर आँच मन पर जमी हुई गहरी,
उस आँच से दर्द गहरा मेरे मन पर तारी है।
उलझनें शिकवे गिले सदा ही कमजोर करते,
खुद को मजबूत रखने की बड़ी जिम्मेदारी है।
रब की रहमतें भी नही दर्द कम करती मेरी,
टीस उठने और कसक बढ़ने की ये तो बारी है।
अधूरी आकांक्षाओं के तिलिस्म में डूबता मन,
इसको उबारने की कोशिशें सारी हमारी है।
दर्द चाहे कितना गहरा हो मुस्कुराह सजी हो,
इसको बनाये रखना ही असली दुनियादारी है।
छू न सके मेरे मन को गहरे तक कोई शख्स,
इसके लिये ही जतन मैंने किये जो सारी है।