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19 Feb 2024 · 1 min read

राजे तुम्ही पुन्हा जन्माला आलाच नाही

अरे आंधळ्या या डोळ्यांनी
स्वप्न ते कधी पाहिलच नाही
राजांचा जय जयकार केला
पण माझ्यातला शिवबा बाहेर कधी आलाच नाही

अरे लुटली रे अब्रु,फोडली रे घरे
दगडाच्या या काळजाला, पाझर कधी फुटलाच नाही
राजांचा मावळा मी समजलो स्वतःला
पण मावळा तर कधी मला होता आलच नाही

अरे स्त्रीच्या माण्यतेला सन्मान देणारा तो शिवबा
माझ्यात कधी उतरलाच नाही
परस्त्रीवर हात उचलायला
का हात माझाही घाबरलाच नाही

अहो नाही उरला का तुमचा तो धाक,तुमची ती प्रथा
हात छाटायला तुमच्या तलवारीच भय आता उरलच नाही
अहो लय लय गायलो तुमची गीता
पण त्याचा अर्थ मला कधी उमगलाच नाही

कदाचित तुम्हीं आलाही असता
पण मिच आता तसा राहीलोच नाही
उलटून पाहिली मी पाने तुमच्या इतिहासाची
पण तो इतिहास मला कधी वळलाच नाही

कधी होऊन मी क्षमस्व माफी तर तुमची मागीतलीच नाही
ही माझी निष्ठूर्ता की तुमच्यावरच प्रेम
यातला अर्थ मला अजून कळलाच नाही
म्हणूनच राजे तुम्हीं पुन्हा कधी जन्माला आलाच नाही

Language: Marathi
59 Views
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