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12 Oct 2017 · 1 min read

*****मन बावरा ***

मन बावरा

मन चंचल मन बावरा पंछी
दूर दूर तक सैर कराए।
पल में यहां तो पल में वहां
पंख लगा कर उड़ता जाए।

कभी तो लेकर यह उड़ जाता
सात समंदर पार मुझे
कभी ऐसा मूरख हो जाता
कोई रास्ता ही न सूझे।

कभी तो झूमे खूब खुशी से
कभी उदासी छा जाए।
कभी गुनगुनाता ये तराने
कभी घटा गम की छाए।

मन ही है जो हर पल हर क्षण
मानव का हर रूप दिखाए।
मानव के हर भाव का मन ही
नित्य नया दर्शन करवाए।

–रंजना माथुर दिनांक के 12/10/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

Language: Hindi
3105 Views
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