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30 Apr 2023 · 1 min read

“आशा” की कुण्डलियाँ”

१.

अगली, पाछिलि भूलि कै, बात ज्ञान की बोल,
खुशी और दुख साथ हैं ,जीवन चक्र अमोल।
जीवन चक्र अमोल, कहानी सच मा गहरी,
गई साँझ हय आय, बीति अब चली दुपहरी।
कह “आशा” कविराय, कुँडली लिक्खी पहली,
दाद मिले यदि आज, तबहिं तौ लिक्खौँ अगली..!

2.

टूटी आस जु धान की, गेहूँ कवन कहाय,
ओले-बरखा माहि सब, खेती गई नसाय।
खेती गई नसाय, महँग अब डीजल आवै,
होत हौसला पस्त, खाद अरु बीज छकावै।
कह “आशा” “कविराय, बात तनिकहुँ नहिं झूठी,
टप-टप चुअत मड़ाय, खाट अबहूँ है टूटी..!

3.

महिमा जगत विनम्रता, फिरि-फिरि कलम लिखाय,
रावन कीन्हि उजड्डई, सोनी लँक जराय।
सोनी लँक जराय, कियो पद, कुल कौ नासा,
भले तपी घनघोर, चारि बेदन कै ज्ञाता।।
कह “आशा” कविराय, खजुरिया राखि न गरिमा,
झुकत आम, फल भार, सबहिं गावैं उर महिमा..!

4.

न्यारी गति है, प्रीत की, इक अदभुत सौगात,
कान्ह, हस्तिनापुर चले, नहिं राधा बिसरात।
नहिं राधा बिसरात, समय पै बीतो भारी,
बिपदा केहिसे कहउँ, हाय कैसी लाचारी।।
कह “आशा” कविराय, रास की कथा पियारी,
बाँसुरि सौँपी, कान्ह, राधिका, जग ते न्यारी..!

5.

फूटी मटकी लखि नहिं, सिगरो दही गिराय,
जोड़-घटाना करम कौ, सुफल कवन बिधि पाय।
सुफल कवन बिधि पाय, चदरिया हय गई मैली,
फिरि-फिरि धोवत काहि, बीति अब चली दुपहरी।
कह “आशा” कविराय, कुसँगति कबहुँ न छूटी,
ब्यर्थहिँ दोस लगाइ, मोरि तौ किसमत फूटी..!

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