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1 Jun 2023 · 1 min read

शांति तुम आ गई

क्लांत,अशांत जग सारा
जैसे ही तुम आ गई…
जैस गुमसुम मंजर में
ताजी बयार आ गई…

उमस भरे मौसम में
ठंडी फुहार आ गई…
पतझड़ पछाड़ ज्यों
बसंत बहार आ गई…

इस सहमे से दिल में
जैसे ही तुम आ गई…
इन सिले होठों पे भी
मधुर मल्हार आ गई…

सूने जीवन में सचमुच
जब से तुम आ गई…
फूल जैसी खिल कर
घटाओं के जैसे छा गई…

चारों दिशाओं में फैली
खुशबू जैसे घुल गई…
आती लहरों से धुली
करने तृप्त हो तुल गई…

जब खींची तलवारें
युद्ध की धुन्ध छाई…
बम-बारूद के बीच
तुम ही तो विराम लाई…

कौन? कामयाबी,शोहरत
या प्रेयसी या फिर दौलत
ना….ना…मत करें भ्रांति
वो तो है एकमात्र शांति…
(पृथ्वीशांति,अंतरिक्षशांति,वनस्प…)
~०~
मौलिक एवं स्वरचित. रचना संख्या-०४
जीवनसवारो,दी बॉयोफिलिक,मई २०२३.

Language: Hindi
174 Views
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