मन बावरा
मन बावरा ही तो है
रोक सके तो रोक ले,
जो सच हो ना सके
स्वप्नलोक में देख ले।
वो तारीफ़ में किसी की
झूठे कसीदे गढ़ लेता
सच्चा प्रेम में डूबकर
अक्सर सजदा कर लेता
खींचा-खींचा बिछा-बिछा
कभी खुद को सहेज ले,
मन बावरा ही तो है
रोक सके तो रोक ले।
मेरी 50वीं प्रकाशित काव्य-कृति :
‘स्पन्दन’ से…
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्यकार/प्रशासनिक अधिकारी