मन की अभिलाषा
(हिंदी पखवाड़े में हिंदी पर रचनायें)
छंद- चौपाई की अर्द्धाली
मात्रा भार- 16
हिन्दी बने विश्व की भाषा
स्वाभिमान की है परिभाषा।
गंगा जमनी जहाँ सभ्यता,
पल कर बड़ी हुई है भाषा।
संस्कृति है’ वसुधैवकुटुम्बकम्,
हिन्दी संस्कृत कुल की भाषा।
बाहर के देशों में रहते,
हर हिन्दुस्तानी की भाषा।
हर प्रदेश हर भाषा भाषी,
हिन्दी हो उन सबकी भाषा।
आज राजभाषा है अपनी,
कल हो राष्ट्रकुलों की भाषा।
बने राष्ट्रभाषा यह ‘आकुल’,
बस यह है मन की अभिलाषा।