*”मन का क्या , वो तो बातें करता है”*
“मन का क्या ,वो तो बातें करता है”
चेतन मन शक्तियों का पुंज ,ईश्वरीय ज्ञान में उतरता जाता है।
दिव्य शक्ति का अदभुत खिंचाव ,महसूस कर सहनशील बन जाता है।
कभी लहरों संग गोते लगाता , कभी गहराईयों में डुबकी लगाते जाता है।
सोते जागते उठते बैठते चलते फिरते हुए , नित
नए ख्वाबों से उम्मीद जगाता है।
मन का क्या ,वो तो बातें करता …! ! !
न जाने कब कहाँ से कैसे ,भूली बिसरी यादों में खोकर भटकने लग जाता है।
साँझ सबेरे हर पल क्षण ,उथल पुथल मचा मन थक कर उलझ जाता है।
कोई बोले या न बोले कोई सुने न सुने ,चंचल मन को इधर उधर कहीं न कहीं बहलाता है।
एक पल यहाँ दूजे पल वहाँ ,कहीं न कहीं स्थिर मन चैन नहीं पाता है।
मन का क्या ,वो तो बातें करता है….! ! !
सुख हो या दुःख या गमों का पहाड़ हो ,संकट की घड़ी में विचलित हो जाता है।
मायामोह के चक्रव्यूह में उलझकर ,कर्मबंधन में बंधे हुए दायित्व निभाते जाता है।
चाँद सितारे देखते आकाश की ओर निहारता, कभी प्रकृति को निहार मन प्रसन्न हो जाता है।
समुद्र तट पर शांत चित्त बैठे हुए,अविरल धारा से बातें कर मन बहलाता है।
मन का क्या ,वो तो बातें करता है….! ! !
एकांत अकेला तन्हाई में जब ,ध्यान साधना में तल्लीन हो प्रभु से बातें करता है।
आत्मा से परमात्मा का मिलन ,साक्षात दर्शन ज्ञान इन्द्रियाँ जागृत कर जाता है।
मनःस्थिति जैसी भावना वैसी स्थिति ही ,अदृश्य शक्ति चंचल मन बन जाता है।
मन की बात मन ही जाने , किससे कहें मन की बात कभी समझ नही आता है।
मन की क्या ,वो तो बातें करता है…! ! !
चंचल मन कभी हँसाता कभी रुलाता ,बोझिल सा गुमसुम उदासीन हो जाता है।
कभी गंभीर कभी अधीर होकर ,तन्हाइयों में विचलित हो जाता है।
आशा और निराशाओं के बीच में ,ये मन उलझ कर जब सुलझ न पाता है।
कुछ न सूझे कंटक मार्ग पर , तब मन की इच्छाओं को पूरा करने खुद की पहचान बनाता है।
जीवन पथ पर चलकर ,अग्नि में तपकर सोना बन निखर जाता है।
मन की क्या , वो तो बातें करता है…!! !
अच्छे सोच विचार मंथन से ,वैसा ही मन सकरात्मक ऊर्जावान बन जाता है।
गलत सोच विचार धारा से ,विरोधी भाव नकरात्मक सोच ऊर्जाहीन बन जाता है।
मन सब कुछ सहता ,जब मुदित मन खिन्न हो उदासीन हो चुपचाप बैठ जाता है।
सुख दुःख आते जाते रहते है ,अंतर्मन जब प्रभु विराजे जीवन सफल बना जाता है।
मन का दर्पण खोल रे प्राणी ,एकाग्रचित्त से स्वयं की शक्ति को टटोलता जाता है।
मन के हारे हार है मन के जीते जीत ,स्वर्ग यही पे नर्क यही पे प्रभु से जोड़ ले प्रीत।
मन का क्या , वो तो बातें करता है….! ! !
जय श्री राधेय जय श्री कृष्णा?
शशिकला व्यास✍