मन्ज़रों के नाम होकर रह गयी
मन्ज़रों के नाम होकर रह गयी
खास सुरत आम होकर रह गयी
रात दुख की काटकर बैठै ही थे
जिन्दगी की शाम होकर रह गयी
ज़िंदगी का नाम क्या रखता कोई
मौत का पैग़ाम होकर रह गयी
रफ्ता रफ्ता पी लिए और जी लिए
ज़िंदगी क्या जाम होकर रह गयी
शायरी इन’आम की हक़दार थी
अब तो बस इल्ज़ाम होकर रह गयी
– नासिर राव