मनुष्य बड़ा ही विचित्र प्राणी !
मनुष्य बड़ा ही विचित्र प्राणी ,
षड्यंत्रों से भरी उसकी कहानी।
ऊपर से कुछ,भीतर कुछ होता है,
कहता कुछ, कुछ और ही करता है
आंसू छुप कर तुम बहाया करो,
घाव किसी को ना दिखाया करो।
मरहम लगाने कोई ना आएगा,
तंज कसेगा, गम और बढ़ाएगा।
रिश्तों की डोर बंधी है स्वार्थ से,
दूर हुआ मनुष्य अब परमार्थ से।
ईर्ष्या और लोभ की ऐसी कहानी,
ठहर कर बहता हो जैसे पानी।
शक्ति का साथ भगवान भी देते,
जहां रोशनी वहीं दिनमान भी होते।
दरिद्र दुख अपना स्वयं ही सहता है,
किसी से बेचारा कुछ ना कहता है।
प्रेम और व्याहार का मोल नही,
भावनाओं का ज्यादा रोल नहीं।
अब तो मतलब का ये संसार है,
जीवन में बस जीत और हार है।