मधुशाला रास न आई तू
मधुशाला रास न आई तू, तेरी औकात का तिरस्कार.
जिस जिस ने तेरा स्वाद लिया, मिट गया वंश घर का चिराग..
राजा भी मिटे गणतंत्र मिटे, मिट गये महल और जमींदार.
रावण भी मिटा कौरव भी मिटे, जिसने मधुशाला किया पान..
कलयुग में तेरी महिमा हैं, न कोई तुझमें भेद करे.
हर घर में तेरा तांडव हैं, राजा रानी तेरे बनें दास..
मार गरीबी की झेले, पर मधुशाला न त्याग सके.
फटेहाल बीबी बच्चे, और मूत रहे मुंह में कुत्ते..
भाई से भाई बैर करे, मधुशाला की हैं करामात.
हर घर का चैन छीन लीन्हा, झगड़े की तू हैं शुरुआत..
कहे आत्मा तेजपुरिया की, मंथन से कैसा रतन मिला.
अभिलाषा थी अमृत की मुझे, इसने मानवता को हैं डसा..
हम भी तेरे जद में आये, बापू भाई भी शिकार हुये.
मैं कितना किसको समझाऊं, न कोई मुझे समझ पाए..
प्रण कीन्हा मैंने हैं मुझसे, न तुझको हाथ लगाऊंगा.
चाहे तू जोर लगाले कितना, ठेंगा मैं तुझे दिखाऊंगा..
मधुशाला रास न आई तू, तेरी औकात का तिरस्कार.
जिस जिस ने तेरा स्वाद लिया,मिट गया वंश घर का चिराग..
श्याम सिंह लोधी राजपूत “तेजपुरिया”