मदिरा सवैया
धारण धीर धमाल धरे धनु , धावक ध्यान ध्वजा धरते।
भारत भूमि भुवाल भजे भव, भीतर भाल भुजा भरते।।
कर्मठ कौन कमाल करें कब, कोशिश कोटि किया करते।
मौन मृणाल मथे मधुसूदन , मादक मोह मृगा मरते।।१।
मौन मथे मृदु मौज मिले , मृद मानुष माँगत माद मरे।
धर्म धरा धन-धान्य ध्वजा, ध्रुव धूसर धीमन ध्यान धरे।।
पावक पाप प्रलाप परा , पर पंच प्रथा परिहास परे।
भीतर भाव भले भरलो , भव भाग्य भली भरपूर भरे।।२।