मत छोड़ो गॉंव
उदासी भरी जिन्दगी
थके हुए पाँव,
पैसों की खातिर हमने
छोड़ा था गॉंव।
वक्त कह रहा ये
उम्मीद का दीप जलाओ
खेतों को जोत कर
सोना उसमें उपजाओ
चहुँओर फैली वहाँ
प्रेम-अपनत्व की छाँव
पैसों की खातिर
मत छोड़ो अपना गॉंव।
(प्रकाशित काव्य-कृति :
‘माटी के रंग’ से चन्द पंक्तियाँ )
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
सुदीर्घ साहित्यिक सेवा हेतु
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त।