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10 Jun 2023 · 1 min read

मजबूर

जीवन का ये कैसा अजीब दस्तूर है
मुस्‍कुराता चेहरा भी लगे मजबूर है
बीच अपनों के मिले सुकून इसको
उलझने ही जिन्‍दगी का कसूर है
रोटी के खातिर ही आदमी मजदूर है
अपनी मेहनत पर सबको ही गुरूर है
हँसीं खुशी के साथ रहते सब के बीच
मगर जिन्दगी तो आज भी बेनूर है
______________अभिषेक शर्मा

Language: Hindi
68 Views
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