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7 Mar 2024 · 1 min read

* मंजिल आ जाती है पास *

** गीतिका **
~~
पथ पर आगे बढ़ते बढ़ते, मंजिल आ जाती है पास।
मिट जाती है थकन राह की, मन में जग जाती है आस।

तीव्र धूप पथरीले पथ पर, घायल हो जाते हैं पांव।
किंतु कहां रुक पाते राही, अटल हुआ करता विश्वास।

कौन कहां पर साथी बनता, और निभा देता है साथ।
नीरस बने हुए जीवन में, घुल जाती है सहज मिठास।

तूफानी राहों में अविरल, बढ़ते कभी न हो भयभीत।
कल तक कष्ट नहीं थे भाते, लेकिन अब आते हैं रास।

बहुत लोग अक्सर मिल जाते, सह लेते पीड़ा चुपचाप।
साथ उन्हीं के हँसते गाते, जो भी मिलते हमें उदास।

जेठ मास की दोपहरी में, सहते सहते तपती धूप।
जब शीतल छाया मिल जाए, बुझ जाती तनमन की प्यास।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य

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