भोपालपट्टनम
प्रकृति के हिंडोले में मुस्कुराता
भोपालपट्टनम कस्बा,
महाराष्ट्र-आन्ध्र सीमा से जुड़कर
जगाता जोशो-जज्बा।
लाल आतंक के साये में अब तो
दहशत पैदा कर जाता,
बस्तर की आखिरी छोर में यह
गौरव – गान सुनाता।
सत्रह सौ पंचानबे में हुआ था
यहाँ जनजातीय विद्रोह,
अंग्रेज अधिकारी ब्लंट लौटा था
अपना मिशन छोड़।
गोदावरी नदी के पावन तट पर
रौशन होता अतीत,
राज्य मार्ग से सीधा जुड़ा हुआ
मन में जगाता प्रीत।
(मेरी सप्तम काव्य- कृति : ‘सतरंगी बस्तर’ से..)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
अमेरिकन एक्सीलेंट राइटर अवार्ड प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।